tag:blogger.com,1999:blog-879770024585731641.post5861744048413561381..comments2023-07-31T05:33:36.993-07:00Comments on Taabar Toli: tum bhi aao...khelenge..दीनदयाल शर्माhttp://www.blogger.com/profile/08569561473726641459noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-879770024585731641.post-35592099226759802452010-03-22T07:54:51.939-07:002010-03-22T07:54:51.939-07:00दीनदयाल शर्मा की रचनाएँ
अब तो जाग
कौन बुझाए ख...दीनदयाल शर्मा की रचनाएँ <br /><br />अब तो जाग <br />कौन बुझाए खुद के भीतर , रहो जलाते आग,<br />ऐसे नहीं मिटा पायेगा, कोई आपका दाग.<br /><br />मन की बातें कभी न करते, भीतर रखते नाग,<br />कैसे बतियाएं हम तुमसे, करते भागमभाग.<br /><br />कहे चोर को चोरी कर ले, मालिक को कह जाग,<br />इज्जत सबकी एक सी होती, रहने दो सिर पाग.<br /><br />धूम मचाले रंग लगा ले, आया है अब फाग,<br />बेसुर की तूं बात छोड़ दे, गा ले मीठा राग.<br /><br />मन के अंधियारे को मेटो , क्यों बन बैठे काग,<br />कब तक सोये रहोगे साथी, उठ रे अब तो जाग.<br /><br /> सपने <br />सपने तो लेते हैं हम सब, ऊंची रखते आस,<br />मिले सफलता उसको, जिसके मन में हो विश्वास.<br /><br />बेमतलब की बात करें हम, अधकचरा है ज्ञान, <br />अपनी कमजोरी पर आखिर, क्यों नहीं देते ध्यान.<br />दोषी खुद है मंढे और पर, किसको आए रास.<br /><br />आगे बढ़ता देख न पाए, भीतर उठती आग.<br />कहें चोर को चोरी कर तू, मालिक को कहें जाग,<br />कैसे हो कल्याण हमारा, चाहें और का नाश.<br /><br />अच्छा कभी न सोचेंगे हम, भाए न अच्छी बात,<br />ऊंची - ऊंची फेंकने वालों, के हम रहते साथ,<br />लाखों की चाहत है अपनी, पाई नहीं है पास.<br /><br />आलस है हम सबका दुश्मन, इसको ना छोड़ेंगे,<br />सरल मार्ग अपनाएं सारे, खुद को ना मोड़ेंगे,<br />अंधकूप में भटकेंगे तो कैसे मिले उजास..<br /><br />समय<br />गलत काम में गुस्सा आता, धीरज क्यों नहीं धरता मैं, <br />उम्मीदें पालूं दूजों से, खुद करने से डरता मैं,<br /><br />आलस बहुत बुरी चीज है, किसको कैसे बतलाऊँ,<br />आलस की नदिया में बैठा, अपना गागर भरता मैं,<br /><br />समय की कीमत कब समझूंगा, समय निकल जाएगा तब, <br />समय सफलता कैसे देगा, कोशिश कभी न करता मैं, <br /><br />सब कुछ जान लिया है मैंने, कुछ भी नही रहा बाकी, <br />मुझको कौन सिखा सकता है, अहंकार में मरता मैं, <br /><br />समय नहीं कुछ कहने का अब, खुद कर लूँ तो अच्छा है,<br />सीख शरीरां उपजे सारी , बाहर क्यों विचरता मैं, <br /><br />मानद साहित्य संपादक, टाबर टोली, हनुमानगढ़ जं. <br />राजस्थान. 09414514666, 9509542303दीनदयाल शर्माhttps://www.blogger.com/profile/07486685825249552436noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-879770024585731641.post-11788939636149710222010-03-22T07:53:07.958-07:002010-03-22T07:53:07.958-07:00ग़जल की शक्ल में एक रचना
तकाज़ा वक्त का / दीनदयाल...ग़जल की शक्ल में एक रचना <br />तकाज़ा वक्त का / दीनदयाल शर्मा <br /><br />चेहरे पर ये झुर्रियां कब आ गई,<br />देखते ही देखते बचपन खा गई.<br /><br />वक्त बेवक्त हम निहारते हैं आईना,<br />सूरत पर कैसी ये मुर्दनी छा गई. <br /><br />तकाज़ा वक्त का या ख़फ़ा है आईना.<br />सच की आदत इसकी अब भी ना गई.<br /><br />है कहाँ हकीम करें इलाज इनका,<br />पर ढूँढ़ें किस जहाँ क्या जमीं खा गई. <br /><br />बरसती खुशियाँ सुहाती बौछार, <br />मुझको तो "दीद" मेरी कलम भा गई.<br /><br />अध्यक्ष, राजस्थान साहित्य परिषद्, <br />हनुमानगढ़ जं. - 335512 <br />http://deendayalsharma.blogspot.com<br />सृजन : 21 March , 2010, Time : 7:25 AMदीनदयाल शर्माhttps://www.blogger.com/profile/07486685825249552436noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-879770024585731641.post-52366944430898638832010-02-24T01:49:17.045-08:002010-02-24T01:49:17.045-08:00Bal man ki bhut hi payri abhivekti photo m dhik re...Bal man ki bhut hi payri abhivekti photo m dhik rehi h.bina khel k bachpan adhura h.Achhye chitro k liye Aap ko dhanyabad.<br />NARESH MEHANnareshhttps://www.blogger.com/profile/10198755383535277364noreply@blogger.com